Wednesday, April 15, 2009

एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग २

नमस्कार मित्रों। मैं फ़िर से हाज़िर हूँ, कथा का दुसरा भाग लेकर-
एक दर्द भरी प्रेम कहानी
पूर्व-
दीपक और प्रकाश, जो बनारस में पढ़ते हैं; एक दिन अचानक एक लड़की आरती की जान बचाते हैं। दीपक को आरती से प्यार हो जाता है। पुलिस आरती के जीवन के खलनायक, दुबे को पकड़ लेती है। आरती के चाचा, जो नेपाल में हैं, को ख़बर दी जाती है। पुलिस के निर्देश पर आरती अगले पाँच दिनों तक दीपक के डेरे पर रुक जाती है। अब आगे---
वो पाँच दिन।
पहले तो दीपक के मकान मालिक ने दीपक को अजीब और आरती को अजीबोगरीब नज़रों से देखा। मगर जब प्रकाश ने सारी घटनाएँ सुनाई और शाम को निरिक्षण के लिए पुलिस कि एक महिला कांस्टेबल आई; तब जाकर पाण्डेय जी और उनके घरवालों ने चैन कि साँस ली। पाण्डेय जी कि लड़की उषा ने उसी समय आरती को अपनी मुंह बोली दीदी बना लिया। दीपक पाण्डेय जी को चाचा जी और उनकी पत्नी को चाची जी कहता था। आरती ने भी वही कहना शुरू कर दिया। चाची जी ने उषा के कमरे में है आरती के सोने के लिए एक चौकी बिछा दी।
दीपक आरती से कुछ कहना चाहता था, मगर सब लोगों के सामने कुछ कह नही पाया। रात में प्रकाश, दीपक और आरती के खाने के लिए बनवारी कि दूकान से पुरी और जलेबी ले के आया। चाची जी ने कहा- "खाना लाने कि क्या जरूरत थी? वापस कर आओ। मैंने खीर और दम आलू कि सब्जी बनाई है। सब लोग वही खा लेंगे।"
रात में दावत हुई। चाची जी आरती के लिए अत्यन्त भावुक हो गयी थीं। आरती भी रात भर में ही पाण्डेय जी के परिवार से घुल मिल कर दूध-चीनी हो गयी। खाना खाने के बाद दीपक और प्रकाश छत पर गए। बातों बातों में ही दीपक ने कहा- "देखते हो प्रकाश। रोज़ तो हम लोग बनवारी के दूकान पर जाकर ही खाते थे। आज अपनी आरती मैडम के लिए कुछ ज्यादा ही मेहमान नवाजी हो रही है।"
"तो तुझे जलन क्यो हो रही है बेटे? इस बात से तो नही, कि तुने जो खाना आरती के लिए मंगवाया, वो बेकार हो गया?!!!"
"नही यार, वो तो मैं कल सुबह खा ही लेता। पर आरती खाती तो-----"
"बेटा सुधर जा। वरना बुरा फसेगा। समझा रहा हूँ--"
दीपक ने भोला बनते हुए कहा-"क्या बोल रहा है यार?"
प्रकाश ने अपना हेलमेट उठा लिया-"देख दीपक! प्यार, मोहब्बत और कोका कोला कि बातें दोस्तों से कभी नही छिपती. आराम से सो जा। कल कॉलेज जाना है। वैसे आज का पुरा दिन तेरी आरती मैडम और दुबे जी के पीछे बर्बाद हो गया है। मैं चला गंगा किनारे-"
इतना कह कर प्रकाश तो चला गया। मगर उस रात २ बजे तक दीपक को नींद ही नही आई। वो हमेशा सोचता रहा- "क्या आरती सो गई?"
अगले दिन सुबह जब दीपक प्रकाश के मोटर साइकिल पर बैठ कर कॉलेज जाने लगा, तब आरती छत पर अपने कपड़े पसार रही थी। दीपक कि नज़रें उधर ही थी। आरती ने अलने पर अपना दुपट्टा पसरा, और उसी दुपट्टे में छिपने कि कोशिश करते हुए दीपक को एक तिरछी नज़र से देखा। दीपक का हाल बुरा हो गया। झेप उसके चेहरे पर साफ़ दिख रही थी। आरती मुस्कुरा पड़ी। दीपक उसकी मुस्कराहट देखके फ़िर से खो गया। तभी प्रकाश ने मोटर साइकिल स्टार्ट कि। दीपक आरती का मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर ही कॉलेज पहुँच गया।
रात में फ़िर चाची जी ने आरती के लिए दावत मनाई। दीपक और आरती के बीच हा हूँ के अलावा कोई और बात ही नही हो पाई। दीपक आरती को अपने दिल कि बात बताना चाहता था। मगर आरती कभी अकेली नही होती थी। कभी चाची जी के साथ उनके किचेन में, तो कभी उषा के साथ। उषा कि बच्ची तो आरती का पीछा कभी छोड़ती ही नही थी। दीपक छत पर वाले कमरे में रहता था। आरती कभी कभी छत पर आती, तो उषा भी उसके पीछे पीछे आ जाती थी। तीसरे दिन भी यही हाल रहा। दीपक आरती के प्यार में पागल हुआ जा रहा था। और ज़माने को इसकी ख़बर भी न थी। मगर प्रकाश ज़माने से बाहर था। शाम को जब दोनों बनवारी कि दुकान पर चाय पी रहे थे, तब प्रकाश ने कहा- "यार, देख। आरती से प्यार व्यार कि आस मत लगा."
" तू फ़िर से ये बकवास कर रहा--"
" बेटा, मान जा। मैं सच कह रहा हूँ।"
"तभी मानूंगा, जब तू मेरे साथ होगा।" दीपक ने आख़िर अपनी बात कह ही दी।
प्रकाश जोर से हंसा- "हा हा हा हा हा ! साले, मैं तो तेरे साथ ही हूँ। मगर तेरे भले के साथ हूँ। और तुझे लग रहा है कि मैं तुझे उपदेश दे रहा हूँ।"
"हा। और मैं चाहता हूँ कि तू मेरे मन का साथ दे। क्योंकि इसी में मेरा भला है।"
"अच्छा??!!?"
"अरे यार, मैं तीन दिन से ठीक से सोया नही हूँ। जब भी उसका चेहरा देखता हूँ, तो अपने जिन्दा रहने पर शर्म आती है। सोचता हूँ कि--"
"अबे बेटे तू तो शायराना हो गया। हे प्रभु। हे बाबा विश्वनाथ, मेरे यार कि रक्षा करना।"
कुछ देर दोनों इसी तरह बतियाते रहे। अचानक जब दीपक चाय- नाश्ते का बिल भर रहा था, तो प्रकाश बोला- "यार, जाके उसे सब कुछ बता दे। ऐसी बातों को दिल में रखना सेहत के लिए अच्छा नही। "
"क्या बोल रहा है?"
प्रकाश अपनी मोटर साइकिल पर सवार हुआ, और हेलमेट पहनते हुए बोला- "अगर चूम ले, तो झूल जा। और अगर थप्पड़ मार दे, तो भूल जा। वैसे भी कल उसका चाचा, यादव नेपाल से आ रहा है। फ़िर वो नेपाल चली जायेगी और तू हाथ मलता रह जाएगा।"
अगले दिन सुबह प्रकाश आरती को लेने आया। उसे ये जानकर अचरज हुआ कि दीपक ने न तो अब तक आरती को अपने दिल कि बात बताई, न ही उसे उसके चाचा के आने कि ख़बर दी। मामले को सँभालते हुए प्रकाश ने आरती को कहा- "आरती जी, जल्दी से तैयार हो जाइये। आपके चाचा जी ट्रेन से आ रहे हैं। दो घंटे में, ९ बजे गाड़ी स्टेशन पर पहुँच जायेगी।"
आरती बड़े ही अनमने ढंग से तैयार हो गयी। प्रकाश के साथ गाड़ी पर बैठ के स्टेशन चली गई। दीपक ऑटो रिक्शा से पहुँचा। सवा ९ बजे ट्रेन आई। चाचा जी देखने से ही हिटलर टाइप लगते थे। छोटा सा सवा ५ फ़ुट का, मोटा सा शरीर। कुरता पायजामा। बंड्डी। अमरीश पुरी और गोगा कपूर के बीच कि आवाज़। प्रकाश दीपक के कान में फुसफुसाया- "बेटा हो गई तेरी शादी आरती के साथ। भूल जा कि ये मोगाम्बो कभी खुश होगा."
चाचा जी आरती से ऐसे मिले जैसे उन्हें पता हो कि ब्रह्मा ने इसी तरह मिलना तय किया था। आरती भी चाचा जी से मिलके बहुत खुश नही नज़र आई. फ़िर भी दोनों के चेहरे पर मुस्कराहट कबड्डी खेल रही थी.
अगले दिन शाम को वापसी कि गाड़ी थी. बनारस से सीधा रक्सोल. तब तक चाचा जी ने बनारस घूमने कि योजना बनाई। दीपक, प्रकाश, आरती और चाचा श्री यादव जी रात के ९ बजे तक बनारस घूमते रहे. रात में वापस आने पर ही यादव जी, पाण्डेय जी के परिवार से मिले. दीपक का उदास चेहरा देखकर प्रकाश ने उसके कान में कहा- "जय हो बाबा विश्वनाथ. तुम्हारी माया अपरम्पार है."
आगे क्या हुआ?
जानने के लिए पढिये- एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग-3.

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