Thursday, April 9, 2009

एक दर्द भरी प्रेम कहानी. भाग १.

दीपक और प्रकाश।
दीपक और प्रकाश दोनों साथ साथ बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में पढ़ते थें। दोनों फिलोसोफी यानी की दर्शन विषय से पोस्ट ग्रेजुएट, यानी की पारा स्नातक की पढ़ाई कर रहे थें। दोनों में गहरी दोस्ती थी। दोनों एक ही बिस्तर में खाते और एक ही थाली में सोते थे। अरे रे रे। गलती हो गई, एक ही थाली में खाते और एक ही बिस्तर में सोते थे। घबराइये नही। दोनों के बीच सिर्फ़ दोस्ती थी, कोई दोस्ताना नही था। हा हा हा। दोनों दिन भर एक साथ कॉलेज में क्लास किया करते, और शाम में बनारस की गलियों में घुमने निकल जाते। दीपक के पिताजी पटना जिले के एक प्रसिद्ध व्यवसायी थे और प्रकाश के पिताजी सिवान जिले के एक छोटे से गाँव में प्रधान अध्यापक थें।
दोनों की दोस्ती खूब जम रही थी। और दोनों मन लगा के पढ़ाई भी कर रहे थे। दोनों की सबसे बड़ी खूबी ये थी की दोनों किसी भी अनजाने की, जो जरूरत में हो, मदद करने से कभी कतराते नही थें। हाँ, प्रकाश कभी कभी विकट परिस्थिति देखकर घबरा जरूर जाता था।
शनिवार की रात, गंगा किनारे।
एक बार दीपक और प्रकाश गंगा की आरती देखने गए। दशास्वमेध घाट पर भरी भीड़ लगी थी। शनिवार की शाम थी, और अगले दिन कॉलेज नही जाना था। इसलिए आरती ख़त्म हो जाने के बाद भी देर रात तक दोनों गंगा के घाट पर बैठे, गप्पे लड़ा रहे थें। बातें करते करते रात के १२ बज गए, और फ़िर भी उनका मन वह से हटने को नही हुआ। वे बातें करते करते कभी घाट की सीढियों को देखते थे, कभी गंगा जी के लहराते पानी को। गंगा में नाव और स्टीमर का आना जाना तो ११ बजे से ही बंद हो गया था।
अचानक सवा १२ बजे के स्टीमर गंगा में आयी। दोनों को इतनी रात में स्टीमर देखके थोड़ा अचरज हुआ। दोनों उधर ध्यान देने लगे। तभी उन्होंने देखा की कुछ लोगों ने स्टीमर पर से किसी व्यक्ति को पानी में धक्का दे दिया है, और वो व्यक्ति सिर्फ़ इशारे से अपनी रक्षा की गुहार लगा रहा है, मगर चिल्ला नही रहा है। दोनों ने चारो तरफ़ देखा, घाट पर दूर दूर तक कोई नही था। स्टीमर दान दनते हुए भाग खड़ी हुई। दीपक और प्रकाश ने आव देखा न ताव, और गंगा में छलांग लगा दी। १५ मिनट के लगातक तैराकी के बाद, उन्होंने उस आदमी को खींच के बहार निकला। वो एक लड़की थी।उसके मुंह पर एक पतली सी पट्टी बंधी थी। लहरों के बीच, वो लड़की दीपक के बाहों में बेहोश पड़ी थी, और प्रकाश उनके पास ही तैर रहा था। उस लड़की को देख के दीपक के होश उड़ गए। ऐसी खूबसूरत लड़की उसने जीवन में पहले कभी नही देखि थी। वो तैरना भूल गया। ये भी भूल गया की उसे उस लड़की को बचाना है। वो तो बस उस लड़की को अपनी बाहों में लिए था, और उसके चेहरे को देखे जा रहा था। शायद बनने वाले ने अपने बनाने का सांचा, उसे बनाने के बाद तोड़ ही दिया था। या फ़िर उसे किसी सांचे में गधा ही नही था। शायद शनिवार की रात में फुर्सत से बैठ के, की कल तो छुट्टी है, कुछ नया किया जाए; प्यार से बनाया था।
प्रकाश ने कहा- दीपक, चल। लेके चल उसको।
मगर दीपक ने कोई जवाब नही दिया। वो अपने होश खो बैठा था। स्थिति की गंभीरता को पूरा समझे बिना, प्रकाश ने दीपक और उस लड़की को खींच, और खींचते हुए ही घाट तक ले गया।
घाट पर प्रकाश ने दीपक से छुडा के उस लड़की को लेटाया, और दीपक से बोला- 'बच गयी।'
दीपक जैसे पागलपन में ही बोला-'मेरे लिए,--'
प्रकाश को अब समझ में आया- ' पागल हो गया है क्या? पता नही कौन है? क्यो है?.... '
'जो भी है, सबसे खुबसूरत है।'
'दीपक, बेटा तू चल यहाँ से, फ़िर मैं तुझे बताता हु।'
'नही यार, इसे होश में लाओ'
'होश में?, बेटा तू तो बेहोशी में ही इसी के साथ गंगा मैया में जल समाधि लेने वाला था। अब चल यहाँ से, लड़की का मामला है। खतरा है।'
प्रकाश ने और भी कई तरह से दीपक को समझाने की कोशिश की, मगर वो माना नही। दीपक ने उस लड़की के पेट पर दोनों हाथ रखे के जोर जोर से दबाना शुरू किया, और वो लड़की अपने मुंह से पानी के कुल्ले फेंकने लगी।
प्रकाश बोला- 'देख, अब इसे होश आ रहा है। अब चलते हैं यहाँ से।'

आरती।
होश में आने के बाद, पहले तो उस लड़की ने कुछ देर तक कुछ नही कहा और सिर्फ़ रोती रही। उसको रोते देखके दीपक उसे चुप हो जाने के लिए कहने लगा और प्रकाश ने कहा- 'नौटंकी साली, चल यार चलते हैं यहाँ से।'
दीपक ने कहा-' देखिये, आप अगर हमें कुछ बतायेंगी नही तो हम आपकी मदद कैसे करेंगे?'
मगर वो सिर्फ़ रोती रही। फ़िर दीपक भी प्रकाश की बात मान गया और वहां से जाने लगा। तभी उस लड़की ने दीपक का हाँथ पकड़ के उसे रोका और बोली- 'रुकिए, मुझे अकेली छोड़ के मत जाइए, प्लीज।'
दीपक रुक गया। उसकी आवाज तो उसके रूप से भी ज्यादा सुंदर थी।
फ़िर प्राश ने उसे पीने के लिए पानी दिया। उस लड़की ने कुछ सहज होने के बाद, पहले उन दोनों का शुक्रिया अदा किया और अपना नाम बताया-'आरती।'
'मैं दीपक और ये मेरा फ्रेंड प्रकाश।'
आरती ने उन्हें बताया की वो नेपाल के वीरगंज इलाके से आई थी। किसी सत्यनारायण दुबे ने उसे काम देने के बहाने बनारस बुलाया। मगर संयोग से आरती को मालूम चल गया की दुबे का असली धंधा लकडियों का नही, बल्कि लड़कियों का है। आरती ने उसके changul से भागने की कोशिश की, तो उसके आदमियों ने उसे अस्सी घाट के पास किसी आइस- क्रीम के गोदाम में बंद कर दिया, जहाँ उसी जैसे और भी कई लड़किया बंद थीं। वहां आरती को कहीं से एक मोबाइल फोन मिल गया, जिसके द्वारा उसने नेपाल अपने चाचा मंगत राम जाधव को सब बातें बता दी। मगर ये बाद दुबे को पता चल गया।
जाधव चाह के भी आरती को ना खोज सके, और दुबे का पता किसी को न चले, इसलिए दुबे ने आरती को मार डालने की योजना बनाई, और उसे गंगा में फेंक दिया। मगर---
पकड़ा जाना दुबे का।
दीपक और प्रकाश, आरती को लेकर उसी वक्त पुलिस स्टेसन गए। वहां सब बात बताई। आरती ने दुबे के अड्डे और उस आइस- क्रीम गोदाम का भी पता बताया। सुबह होने से पहले ही सारे गुंडे पकरे गए। गोदाम से १४ लड़कियां बचें गयी। अगले दिन दोपहर में सत्यनारायण दुबे को पुलिस ने इलाहबाद के पास एक देसी कटते और दो किलो गांजे के साथ पकड़ा। इस तरह दुबे के एक और धंधे का पता चला, ड्रग्स के धंधे का। शाम के समय पुलिस स्तासन में शिनाख्त के लिए दीपक और प्रकाश आरती को ले गए। जहाँ आरती ने दुबे की पहचान की। दुबे ने आरती और दीपक को कहा- ' समय बितला पर बुझाई बबुआ, की तू केकरा आग में घी दे देला।'
पुलिस ने कहा की आरती के चाचा को ख़बर कर दी गयी है, और वो ४-५ दिनों में बनारस आ जायेंगे। तब तक आरती के देख रेख की जिम्मेदारी दीपक और प्रकाश पर आ गयी। दीपक प्रकाश के मना करने के बावजूद, आरती को अपने डेरे पर ले गया। प्रकाश होस्टल में रहता था। मगर उन ५ दिनों में वो बार बार दीपक के घर आया करता था। एक बार दीपक ने मजाक में ही कहा- 'साले, तू बार बार मेरे घर पर क्यों आता है? तुझे क्या लगता है, मैं उसका रेप कर दूना?'
प्रकाश ने कहा- 'बेटा, आज बोले हो। फ़िर कभी मत बोलना की मुझे तुम पर भरोसा नही है। मैं तो उस लड़की पर भरोसा नही करता। याद रखो, त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम;;;;....---'
दीपक ने हँसते हुए कहा-' देवो न जानती, कुतो भविष्य? हा हा हा हा।'

आगे क्या हुआ? जानने के लिए, पढ़ते रहिये,
एक दर्द भरी प्रेम कहानी। भाग-२ में।

मित्रों, इतना तो पता चल ही चुका है की आरती एक वक्त की मारी बेचारी अबला नारी है। दीपक उस पर फ़िदा है। शायद उससे प्यार करता है। प्रकाश को ये सब थोड़ा अजीब और खतरनाक भी लग रहा है। अगले ५ दिनों तक आरती दीपक के घर पर रही और ५वे दिन उसके चाचा नेपाल से बनारस आ गए। आगे की कहानी बाद में लिखी जायेगी। मगर अब तक की कहानी आपको कैसी लगी? अपने कमेन्ट मुझे जरूर भेजे। मुझे इंतज़ार है।
तब तक के लिए-
हम हैं राही बेकार के, फ़िर मिलेंगे; भागते दौड़ते ।।

5 comments:

  1. हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है....

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  2. Good thriller and well narrated story.Keep writing and welcome to blogger world of Hindi.
    with regards
    dr.bhoopendra.

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  3. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  4. बहुत बढिया लिखा है आपने , इसी तरह उर्जा के साथ लिखते रहे ।

    बहुत धन्यवाद
    मयूर
    अपनी अपनी डगर

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