Tuesday, April 14, 2009

धन्यवाद.

नमस्कार मित्रों।
आप लोगों ने मेरी कहानी- "एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग-१" को खूब पसंद किया। इसके लिए धन्यवाद्।
जल्द ही इस कहानी की दूसरी कड़ी भी आपके लिए प्रस्तुत करूँगा। आशा है, की अगला भाग भी आपको जरूर पसंद आएगा।
तब तक कुछ अपनी बात की जाए।
दोस्तों, मेरा नाम प्रिय रंजन है। पिताजी का नाम श्री शम्भू नाथ पाण्डेय और माताजी का नाम श्रीमती लीला पाण्डेय है। मैं किसी एक जगह का नही हूँ। मगर मूल स्थान है ग्राम- रोहना, प्रखंड- वैशाली, जिला- वैशाली; राज्य - बिहार। मेरा जन्म स्थान बिहार के ही गया जिले में है। मगर मैं वैशाली के ही पड़ोस में मुजफ्फरपुर जिले में पला बढ़ा हूँ। मुजफ्फरपुर के भगवानपुर मुहल्ले में हमारा मकान है। दो मंजिला। ऊपर के मंजिल पर हम लोग ख़ुद रहतें हैं और नीचे के कमरे किराये पर लगा के रखते हैं। मैं २३ वर्ष की उमर में सरकारी नौकरी में लगा। आयकर विभाग ने मुझे महाराष्ट्र का पता दे दिया और मैं आ गया "राज ठाकरे" के नाक के नीचे- अहमदनगर; वही जिला जहाँ साईं बाबा का प्रसिद्द स्थान- शिर्डी है। जेब में कुछ पैसे आए, तो पास में कंप्यूटर हो गया। फ़िर बचपन की दबी हुई आस जागी- लेखक बनने की। सो ब्लॉग पर आ गया।
मित्रो मैंने अपने नाम में उपनाम - पाण्डेय, नही लगाया। मगर महाराष्ट्र में लोग बिना उपनाम के नाम नही समझते। उन्होंने मुझसे पूछा- "भाउसाहेब, ये क्या? आपने औदनाम (मराठी- उपनाम) नही लगाया। क्यो?"
मैंने कहा- " श्री राम जी को क्षत्रिय कहलाने के लिए सिंह और श्री वशिष्ठ जी को ब्रह्मण कहलाने के लिए पाण्डेय की कभी जरूरत नही पड़ी; तो फ़िर हम कलयुगी मनुष्य क्यो उपनाम के पीछे अपना कीमती समय बरबाद कर रहे हैं?"
वैसे महाराष्ट्र में लोगों के उपनाम बड़े ही मजेदार होते हैं- वाघ, वाघमारे, लोंढे, शिंदे, आप्टे, लवांदे, कारभारी, कचरे, घोडे, घोडपडे, इत्यादि इत्यादि। पहले तो मुझे ऐसा लगा की वाघ और वाघमारे के खानदानों के बीच कोई पुरानी खानदानी दुश्मनी तो नही(?), जिस कारण ऐसा नाम रखा है? कचरे नाम का आदमी जब पहली बार मेरे सामने आया, और उसने मुझे अपना नाम बताया तो उस दिन रात भर मेरे पेट में दर्द होता रहा।
वैसे महाराष्ट्र के लोग बड़े सीधे, सरल, सहयोगी और मजेदार होते हैं। मैं यहाँ के नौजवानों से खूब घुल मिल गया हूँ। और हमारी दोस्ती चल निकली है। क्या आप भरोसा करेंगे? एक बिहारी मराठी लड़को का परम मित्र बन चुका है।
अब जरा बिहार की बात भी हो जाए। मेरे घर में मेरे माता- पिता और मेरी दो बहने हैं। एक मुझसे बड़ी है, और दूसरी मुझसे छोटी है। दीदी की शादी मुजफ्फरपुर जिले में ही हो गई है। जीजा जी भी सरकारी नौकरी में हैं, और मजे की बात है की महाराष्ट्र में ही हैं। बिहार मेरा घर है, तो यु समझिये की महाराष्ट्र डेरा। बिहार में मैं पैदा हुआ, और मुझे इस बात का गर्व है। मुझे लगता है की बिहार इस समय भारत का सर्वाधिक संभावनाओ वाला राज्य है। बिहार के लोगों के जैसे मीठे लोग, और बिहार की भाषाओ की जैसी मिठास कहीं और बड़ी मुश्किल से मिलती है। असल में बिहार के बारे में सबसे अच्छी बात मुझे यही लगती है - भाषाएँ। भोजपुरी, मगही, मैथली, अंगिका, वज्जिका, संथाली। वैसे पुरी दुनिया में एक नयी बोली (जो हिन्दी की , मेरे समझ से , सबसे मीठी बोली है) की बड़ी जोर से चर्चा है- बिहारी। बिहारी में अगर आपको ये कहना है की आपको भूख लगी है तो आप कहेंगे- "हमको भूख लगा है।" न की -"मुझे भूख लगी है।"
मेरे शहर मुजफ्फरपुर की एक बड़ी जबरदस्त प्रसिद्धि है। और उसका नाम है- "लीची"। लीची की खटास और मिठास मेरे राग राग में बस गयी है। यहाँ महाराष्ट्र में बिहार की मात्र वही एक चीज है, जिसकी इन गर्मियों के दिनों में बरी जोर से याद आती है।
मित्रों, अभी अपन चलते हैंगे। अगली बार जब मिलूँगा तो मेरे साथ में होगी- 'एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग-२'।
तब तक के लिए धन्यवाद और नमस्कार।
हम हैं राही बेकार के , फ़िर मिलेंगे, भागते दौड़ते।

No comments:

Post a Comment