Monday, September 19, 2011

एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग-५

[देरी के लिए क्षमा मांगता हूँ मित्रो| माफ़ कर दो, लो मैं आ गया-]
पूर्वापर-
दूबे के चंगुल से छूटी  हुई आरती और दीपक में प्यार हो गया, और अपना दीपक उसके पीछे पीछे नेपाल तक चला गया | मगर आरती ने जो पता दिया था, वो गलत निकला| गयी तो कहाँ गयी??-
ज़िन्दगी 
१.
दीपक और प्रकाश ने पढाई पे ध्यान देने का नाटक किया| जी हाँ प्रकाश ने भी| क्योंकि पढाई उसके लिए एक खेल ही था| वैसे भी वो क्लास का टोपर था, तो कुछ सोचना तो था नहीं| अपने दीपक के पढाई की लग गयी थी, पूरी तरह से| किसी तरह खींच के नैया पास-घाट तक लगी| नेट की परीक्षा के लिए आवेदन दिया तो प्रकाश ने दीपक को कहा- "बेटे तुमको एक बात बोलनी थी|"
दीपक ने हरिश्चंद्र घाट पर जलते हुए एक चिता की लपटों को देखा और बोला- "क्या?"
"पहले इधर देख..., उसको देख के क्या फायदा जो जा चुका है?"
दीपक हँसते हुए बोला- "चल बोल क्या बोलना है|" इस बार वो प्रकाश को देख रहा था|
"तुझे पता है न कि तुने अपनी जिन्दगी की मार ली है..."
"हाँ तो?"
"तो ये कि अब तेरे पास जो कुछ बचा है, समेट; और इस मायाजाल से निकल जल्दी से|" दीपक सचमुच प्रकाश का मुंह ताकने लगा|
प्रकाश बोलता रहा-" तूने भी दर्शन पढ़ा है मेरे भाई, अच्छी तरह जानता है तू कि इंसान इच्छाओं के भावारजाल में फंसा रहता है| कभी कभी कुछ इच्छाएं कर लेता है, जो पूरी नहीं हो सकती| किसी हाल में नहीं| तो इसका ये मतलब तो नहीं कि उन इच्छाओं को पकड़ के बैठ जाना चाहिए!!?!! तेरी अपनी कोई ज़िन्दगी भी है यार, और तेरे माँ-बाप भी हैं, और उनकी भी तो इच्छाएं हैं जो तुझसे जुडती हैं....! तू समझ रहा है, मैं क्या कह रहा हूँ?"
"हाँ! समझता हूँ|" दीपक रुआंसा होता हुआ बोला| प्रकाश ने कोई ध्यान नहीं दिया और उठ कर खड़ा हो गया-"तो फिर तैयार रह, ये तेरा आखिरी मौका है; ऐसा समझ और सच में इस परेशानी से निकल, क्योंकि ये इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती..."
दीपक ने भी खड़े होना शुरू किया- "गलत!"
"क्या गलत?"
दीपक खड़ा हो गया- "आपने ही एक बार कहा था महाप्रभु कि आज तक ऐसी कोई इच्छा ही नहीं बनी जो पूरी न होती हो..." प्रकाश कुछ और कहना चाहता था, मगर दीपक बोलता रहा-"घबरा मत! नेट निकाल लूँगा मैं" और प्रकाश को इस तरह से देखा कि वो हंस पड़ा- "साला नौटंकी"


२.
नेट कि परीक्षा तो दोनों की निकली और बाबा विश्वनाथ की कृपा से दीपक को प्रकाश से भी अच्छे नंबर आये| प्रकाश ने सेंट्रल हिन्दू कॉलेज, वाराणसी में व्याख्याता का पद प्राप्त कर लिया| दीपक को भी अलीगढ और नयी दिल्ली से बुलावा मिल गया था, मगर अचानक एक दिन बोला- "यार! मैं घर जा रहा हूँ| मैं ये सब नहीं करूँगा, पिताजी का ऑफिस ही संभालूँगा| अपना बिजनेस ही ठीक है|"
प्रकाश ने एक मिनट चुप रह के सोचा-'ठीक ही है, माँ-बाप के पास रहेगा तो उनकी इच्छाओं को समझ सकेगा; और पैसे की तो इसको कभी कमी रही नहीं| योग्य है, आगे भी नहीं रहेगी.'
"ठीक है! जैसा सोचा है वैसा कर..."
हालाँकि उसको मन कर रहा था कि ऐसा बोले-' जैसी इच्छा है वैसा कर...' मगर उसकी इच्छा वो जानता था, जो बड़ी गन्दी सी और दुखदायी सी थी|

रेलवे स्टेशन पर बिछड़ते समय दीपक की आँखों में दो बूँद आंसू आ गए| प्रकाश के गले लगा और बोला-"भाई, कहते हैं की काशी की गली में बाबा घूमते रहते हैं| कभी मिल जाएँ, तो पूछना की मेरे साथ ऐसा क्यों किया|"
प्रकाश हँसते हुए बोला-"साले! पूछूँगा क्यों? बाबा मिलेंगे तब तो पहले मैं अपनी मुक्ति का उपाय पूछूंगा| तू अच्छे से रहना और फ़ोन करना|"

प्रकाश की शादी तय हो चुकी है और अगले महीने शादी है| दीपक का बिजनेस अच्छा चल रहा है| उसको भी शादी में बुलाया है| सपरिवार| देखिये सब के साथ जाता है कि  अकेले? कहानीके अगले भाग में- 

एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग-६ 

मुझे गालियाँ मत दो दोस्तों! कहानी लम्बी है तो मैं क्या करूँ? बदल नहीं सकता...


Friday, September 16, 2011

Reloaded.......

 लगता है ये ब्लॉग फिर से जिंदा करना पड़ेगा,
मेरे दोस्तों को बहुत पसंद आ रहा था, मैंने बेकार ही बीच में छोड़ दिया. 
मैं फिर से आ रहा हूँ दोस्तों, इंतज़ार करिए.