Wednesday, March 3, 2010

Ek dard bhari prem kahani- 4

एक दर्द भरी प्रेम कहानी. भाग- 4.
एकबारगी तो लगा कि ये कहानी अधूरी ही रह जाएगी.
मगर आज अचानक टाइम मिल गया.
तो एक रि-कैप हो जाये-
गंगा किनारे दीपक आरती से मिला, दोनों ५ दिनों तक एक ही मकान में रहे, मगर अलग अलग. दोनों को एक दुसरे से प्यार हो गया. और अपने दोस्त प्रकाश के समझाने पर आखिर दीपक ने आरती से अपने दिल कि बात कह ही दी. आरती ने जाने से पहले दीपक को एक कागज़ का टुकड़ा दिया- " इसे घर जाकर पढना."   अब आगे---

१. दीपक और प्रकाश देर रात तक बाहर ही रहे. प्रकाश ने दीपक को शास्त्री जी से मिलवाया और दोनों ने शास्त्री जी से पढाई पर चर्चा की. रात को ११ बजे दीपक अपने कमरे पर पहुंचा. साथ में वह कागज़ का टुकड़ा भी था, जो शाम को आरती ने दिया था. दीपक ने जेब में से वह टुकड़ा निकला और पढने लगा-
११/०२,
सेक्टर- C ,
गोरखनाथ मार्ग,
बीरगंज.
 दीपक ने प्रकाश को अगले सुबह वो कागज़ दिखाया. " यार, ये तो उसके घर का पता लगता है." प्रकाश ने कहा.
" ये तो मुझे भी पता है, मगर ये बता; इस पते पर पहुंचा कैसे जाए?"
" पागल हो गया है. तू नेपाल जाएगा!? वीसा, पासपोर्ट वगैरह कुछ भी है तेरे पास?"
" नहीं है. मगर इन सब के बनने में कितना वक़्त लगेगा?"
और दोनों ने पासपोर्ट के लिए आवेदन दे दिया. लगे हाथों वीसा भी बनवाने लगे. ले दे के पासपोर्ट तो बन गया. तभी एक दिन दीपक को ध्यान आया- " अबे प्रकाश. नेपाल जाने के लिए वीसा की क्या जरूरत है?"
" बेटा, जरूरत तो कोई नहीं है. मगर मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता. शायद तुझे पता नहीं, कि मोगाम्बो कितना बड़ा अमरीशपुरी है. वो खड़े खड़े हम लोगों को अन्दर करवा देगा. इसलिए सोच समझ के गेम खेल ."

२. सारे कागजात बनवाते बनवाते एक साल बीत गया. और फिर दीपक और प्रकाश ने गर्मियों कि छुट्टी में रक्सोल की बस पकड़ी. रक्सोल में दोनों ने शास्त्री जी के लड़के अनुपम के घर पर डेरा डाला, जो वहां नारकोटिक इंस्पेक्टर के पद पर काम करता था. अगले दिन सुबह दोनों पैदल ही नेपाल के लिए रवाना हुवे. सीमा पर उनकी चेकिंग हुई. फिर दोनों बीरगंज पहुंचे.
११/०२,
सेक्टर- C ,
गोरखनाथ मार्ग,
बीरगंज.
ये पर्ची हाथ में लिए, दोनों इधर उधर घूम रहे थे. एक रिक्शा वाला मिल गया, जो गोरखनाथ मार्ग को ही जा रहा था. उसने दोनों को बिठाया, और बोला- " रोड पर पहुँचाने का ३० रूप्या, घर तक पहुँचाने का ४५ रूप्या."
दोनों घर पर पहुंचे. दरवाजे पर बड़ा सा ताला लगा था. पडोसी से पूछने पर पता चला- " कोन आरती? इधर तो कोई आरती नहीं रहते हैं साब जी. इस घर में तो ५ साल से कोई नहीं रहते. पहले केदार नाथ सिंह जी रहते थे, अपनी लुगाई अऊर दो लड़कों के साथ. अभी वो जनकपुर में रहते हैं. तब से ये घर खाली ही है."

३. दीपक और प्रकाश ने ढूंढने के कड़ी कोशिश की. अनुपम शास्त्री को भी जानकारी दे दी. उसने भरोसा दिलाया कि वो अपने नेपाली लिंक से आरती के बारे में पता लगाने की कोशिश करेगा. और हमारे दोनों दोस्त बैरंग वापस आ गए. दीपक को उदास देख कर प्रकाश ने कहा- " चल! इसी बहाने पासपोर्ट तो बन गया न. अब विदेश जाने के लिए ज्यादा मसक्कत तो नहीं करनी पड़ेगी न-"
दीपक ने गंगा की लहरों में देखते हुए कहा- " मगर, उसने मुझे गलत पता क्यों दिया. क्या उसे नहीं मालूम था कि उस मकान में ५ साल से कोई नहीं रहता?"
प्रकाश ने भी गंगा मैया के लहरों को देखते हुए कहा- " भूल जा यार. वो बस एक चैप्टर थी. अभी अपने पास पूरी जिंदगी की किताब पड़ी है. भूल जा."
" हूँ...."

 
आगे क्या हुआ? क्या आरती मिली? उसने गलत पता क्यों बताया था?
इन्तेजार करिये- 
एक दर्द भरी प्रेम कहानी, भाग- ५ का.
तब  तक के लिए- नमस्कार.

5 comments:

  1. nice story
    par bhag 5 nahi mila

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  2. Pndey G ek request hai aapse
    aapne puri kahani ko suspense main rakha.
    lakin part 5 kab load kar rahe ho....
    bada accha likhte ho

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  3. jab bhi ye kahani aage badhegi, main likh dunga. abhi ruki hui hai. ab ye mat samajhna ki ye saty ghatna par aadharit hai. :P

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  4. Thik hai we are waiting for part 5

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