दिनांक ५ दिसंबर, २०११.
स्थान- धेरहरा ग्राम, रसूलपुर प्रखंड, थाना- रसूलपुर, जिला- छपरा.
निवास स्थान- श्री जगनंदन तिवारी जी.
[नाम तथा पते काल्पनिक हैं, ढूँढने मत चले जाना कोई; अभी ५ तारीख में टाइम है]
आज तिवारी जी के सुपुत्र प्रकाश की शादी है; बनिहाल के पंडित राम-शुकुल मिसिर(राम शुक्ल मिश्र) की लड़की जोती(ज्योति नाम है, बिहार के गाँव में लोग इसी तरह शब्दों का उच्चारण करते हैं, मजे लीजिये) के साथ | बी ए पास है, अंग्रेजी साहित्त(साहित्य) से | बरियात (बारात) चलने की तैयारी हो रही है, खूब चहल पहल है| और दुल्हे को देख लीजिये, मोबाइल पर लगा हुआ है | वैसे लड़का नोकरी में है, परफेसर (प्रोफेसर) है | समझ लीजिये कि तिवारी जी छाप के लिए हैं |
[१]
बारात चलने का नियत समय ४ बजे था, और साढ़े ४ में तो दीपक पंहुचा है; लेट तो होना ही था| तवेरा लाल रंग की ही है, मगर गोल्डेन गोटे और गेंदा के फूलों से सजने पर बहुत ही शानदार लग रही है | प्रकाश ने अपने पिताजी को कहा -"बाबा! आप पीछे वाला पिलक्का (पीला) मारुती में बैठ जाइए| बनिहाल आने पर फिर इसमें चढ़ जाइएगा; हमको दीपक से बतियाना है|"
बाबा हँसते हुए मारुती में बैठ गए|
गाड़ियों का काफिला जब धेरहरा हाई स्कूल से आगे बढ़ा तब प्रकाश ने दीपक से कहा- "साले, हमारे बियाह में आ रहे हो, कम से कम दाढ़ी तो बना लेते |"
"अबे साला!" दीपक ने कहा, और तुरंत अपने पास पड़े हैण्ड बैग से जेल और रेजर निकला| अगली सीट के पीछे लगा रेयर व्यू मिरर खोला और फटाफट चलती गाड़ी में ही दाढ़ी बनाने लगा - "इतना लक्जरी वाला गाड़ी कैसे भेटा गया भाई?"
प्रकाश ने बाहर भागते पेड़ो की तरफ देखा- " ससुर जी ने ठीक करवा के दिया है ...."
"अच्छा बेटा! आज से ही ससुर 'जी' और बाबाजी पीछे पिलक्का मारुती में बैठे हैं...."
"हा हा हा! अब ठीक से दाढ़ी बना, नहीं तो कट कटा गया तब ठीक नहीं होगा "
"अबे, चेहरे का क्या है?! सामान नहीं काटना चाहिए बस...., और बता, क्या बात करनी थी मुझसे?"
प्रकाश एक सेकंड के लिए सामने सड़क पर देखने लगा, फिर ड्राईवर से बोला- "आगे परबस साह का दूकान है न, वहाँ रुकना और एक पैकेट चिल्गम ले के आना |"
ड्राईवर, दीपक, बाबाजी और बाकी के बाराती अचरज में पड़ गए, कि दुल्हे को अभी चिल्गम खाने कि क्या सूझी? ड्राईवर चिल्गम के साथ साथ दो बोतल पानी भी ले आया, एक बोतल से प्रकाश ने गला साफ़ किया, और दुसरे से दीपक ने चेहरा | "अब लग रहे हो न कि दूल्हा का दोस्त आया है! चचेरी-ममेरी सब मिला के कुल ११ सालियाँ हैं; बवाल कर देना है बनिहाल में!" प्रकाश ने मसखरी की|
सह्बोली बना हुआ मामाजी का लड़का सुमन, जो अभी ७ साल का ही है, और सालियों का मतलब नहीं समझता, जोश में बोला- "भैया! आपके सब साली सब को हम अकेले ही संभाल लेंगे, आप चिंता मत कीजिये|"
उसका तोतला जोश देख के दीपक जोर से हँस दिया, "हा हा हा हा हा! अरे सुमन, खाली इतना ख़याल रखना कि कोई तुम्हारे भैया का जुतवा गायब ना कर दे; ३ हजार रुपया का एक ठो है| समझे|"
सुमन बोला- "हूँ!"
फिर दीपक वापस तवेरा में बैठता हुआ बोला- "दोनों का कितना हुआ? बताओ-"
सुमन वापस आगे की सीट पर कब्ज़ा जमाते हुए बोला- " तीन का तीन, तीन दुनी छौ! ६ हजार का..."
"तब देखा कितना महंगा है? ध्यान रखना."
प्रकाश चिल्गम चबाते हुए वापस अपने जगह पर बैठ, तो सुमन बोला- "अरे भैया! हम हैं न, कोई साली का हिम्मत नहीं है, कि हमारे नज़र के सामने से जूते को हाथ भी लगा सके| पिछला सोमबार के मैच में हम करुनेसवा(कोई करुणेश नामक बच्चा) के बौल पर ऐसा छक्का मारे थे कि टुनटुन सिंह के बँसवारी में जा के गिरा था|
अब जूते का करुणेश के गेंद और टुनटुन सिंह के बांस के बागीचे से क्या लेना और क्या देना? मगर इसी तरह बकवास बाते करते हुए दोनों भाई, ड्राईवर और दीपक जब फुलवरिया चौक पार हुए, तब अचानक ही प्रकाश बोला- "दीपक! बनिहाल में ठीक से रहना, वह १ दिन का मरजाद (शादी के बाद भी १-२ दिन बारात के रुकने कि प्रथा) है|"
"हाँ! तो!? इसमें ठीक से रहने का क्या मतलब?"
"ठीक से इसलिए कि तुम कही इधर उधर मत चले जाना..."
"अरे यार! हम इधर उधर क्यों जाएंगे?" दीपक ने देखा कि बहुत बात करने से थक चूका सुमन आगे के दोनों सीट के बीच के रस्ते से पीछे आ गया और दीपक और प्रकाश के बीच में पसर के सो गया- "भैया, हमको नींद आ रहा है| अभी सो लेते हैं, बाद में तो रात भर जागना ही है|"
गाड़ी अब पूरे रफ़्तार पर थी, दीपक ने खिड़की खोली| रात होने लगी थी, ठंडी हवा जो छन के अन्दर आ रही थी, वो ए.सी. से ज्यादा सुखद थी| दीपक ने हवा का पूरा मजा लेने के लिए बहार सर निकाला| उसके बाल फहराने लगे| उसने आगे देखा, सड़क दौड़ रही थी | बगल में देखा, पेड़ों और खेतो के झुण्ड भाग रहे थे | पीछे देखा, एक पिली मारुती ८००, दो बोलेरो - एक क्रीम और एक नीली रंग की और एक अमर-ज्योति ट्रावेल्स की नारंगी रंग की डीलक्स-विडिओ-कोच-बस पूरी सिद्दत से पीछा कर रहे थें|
हवा के झोंको के दबाव के कारण, या फिर किसी और कारण से अचानक दीपक के आँखों में पानी आ गया और उसने झट से अपने सर को वापस अन्दर खींच लिया |
प्रकाश जो सुमन को हलकी हलकी थपकिया दे रहा था, बड़े आराम से बोला- "आरती आज तुमको बनिहाल में मिलेगी "
दीपक अपने आँखों को पोंछना भूल गया और उसने एक पल भर को प्रकाश को देखा, और फिर सामने कार के शीशे से दिख रहे भागते हुए सड़क कि और देखने लगा| उसके दिमाग ने शायद काम करना बंद कर दिया था| वो ये भी नहीं सोच पा रहा था कि क्या बोले, या क्या प्रतिक्रिया दे| उसे अन्दर ही अन्दर गुदगुदी हुई, और वो अचानक बड़े जोर से मुस्कुरा पड़ा(जी हाँ! मुकुराया भी जोर से जाता है और धीरे से भी) और दीपक कि ओर मुखातिब हुआ- "हैं! ये तो खुशखबरी हो गयी बे!तुमको कैसे पता चला? कहा है? कैसी है? क्या बोल रही थी?...."
"ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है; उसकी शादी हो चुकी है" प्रकाश ने अपने तरफ की खिड़की खोली और चिल्गम बहार फेंका|
ड्राईवर ने आगे खाली रास्ता देख कर रफ़्तार और बढ़ा दी|
[२]
मैं आजकल ज्यादा देर इस ब्लॉग को नहीं दे पाता, मगर इसे पूरा जरूर करूँगा| दोस्तों, ऑफिस में व्यस्तता बढ़ गयी है, और दिमाग में ये कहानी भी तेज रफ़्तार से बढ़ रही है| अब ये रुकने वाली नहीं | बस पढने के लिए तैयार रहिये-
"एक दर्द भरी प्रेम कहानी : भाग- ७"
स्थान- धेरहरा ग्राम, रसूलपुर प्रखंड, थाना- रसूलपुर, जिला- छपरा.
निवास स्थान- श्री जगनंदन तिवारी जी.
[नाम तथा पते काल्पनिक हैं, ढूँढने मत चले जाना कोई; अभी ५ तारीख में टाइम है]
आज तिवारी जी के सुपुत्र प्रकाश की शादी है; बनिहाल के पंडित राम-शुकुल मिसिर(राम शुक्ल मिश्र) की लड़की जोती(ज्योति नाम है, बिहार के गाँव में लोग इसी तरह शब्दों का उच्चारण करते हैं, मजे लीजिये) के साथ | बी ए पास है, अंग्रेजी साहित्त(साहित्य) से | बरियात (बारात) चलने की तैयारी हो रही है, खूब चहल पहल है| और दुल्हे को देख लीजिये, मोबाइल पर लगा हुआ है | वैसे लड़का नोकरी में है, परफेसर (प्रोफेसर) है | समझ लीजिये कि तिवारी जी छाप के लिए हैं |
[१]
बारात चलने का नियत समय ४ बजे था, और साढ़े ४ में तो दीपक पंहुचा है; लेट तो होना ही था| तवेरा लाल रंग की ही है, मगर गोल्डेन गोटे और गेंदा के फूलों से सजने पर बहुत ही शानदार लग रही है | प्रकाश ने अपने पिताजी को कहा -"बाबा! आप पीछे वाला पिलक्का (पीला) मारुती में बैठ जाइए| बनिहाल आने पर फिर इसमें चढ़ जाइएगा; हमको दीपक से बतियाना है|"
बाबा हँसते हुए मारुती में बैठ गए|
गाड़ियों का काफिला जब धेरहरा हाई स्कूल से आगे बढ़ा तब प्रकाश ने दीपक से कहा- "साले, हमारे बियाह में आ रहे हो, कम से कम दाढ़ी तो बना लेते |"
"अबे साला!" दीपक ने कहा, और तुरंत अपने पास पड़े हैण्ड बैग से जेल और रेजर निकला| अगली सीट के पीछे लगा रेयर व्यू मिरर खोला और फटाफट चलती गाड़ी में ही दाढ़ी बनाने लगा - "इतना लक्जरी वाला गाड़ी कैसे भेटा गया भाई?"
प्रकाश ने बाहर भागते पेड़ो की तरफ देखा- " ससुर जी ने ठीक करवा के दिया है ...."
"अच्छा बेटा! आज से ही ससुर 'जी' और बाबाजी पीछे पिलक्का मारुती में बैठे हैं...."
"हा हा हा! अब ठीक से दाढ़ी बना, नहीं तो कट कटा गया तब ठीक नहीं होगा "
"अबे, चेहरे का क्या है?! सामान नहीं काटना चाहिए बस...., और बता, क्या बात करनी थी मुझसे?"
प्रकाश एक सेकंड के लिए सामने सड़क पर देखने लगा, फिर ड्राईवर से बोला- "आगे परबस साह का दूकान है न, वहाँ रुकना और एक पैकेट चिल्गम ले के आना |"
ड्राईवर, दीपक, बाबाजी और बाकी के बाराती अचरज में पड़ गए, कि दुल्हे को अभी चिल्गम खाने कि क्या सूझी? ड्राईवर चिल्गम के साथ साथ दो बोतल पानी भी ले आया, एक बोतल से प्रकाश ने गला साफ़ किया, और दुसरे से दीपक ने चेहरा | "अब लग रहे हो न कि दूल्हा का दोस्त आया है! चचेरी-ममेरी सब मिला के कुल ११ सालियाँ हैं; बवाल कर देना है बनिहाल में!" प्रकाश ने मसखरी की|
सह्बोली बना हुआ मामाजी का लड़का सुमन, जो अभी ७ साल का ही है, और सालियों का मतलब नहीं समझता, जोश में बोला- "भैया! आपके सब साली सब को हम अकेले ही संभाल लेंगे, आप चिंता मत कीजिये|"
उसका तोतला जोश देख के दीपक जोर से हँस दिया, "हा हा हा हा हा! अरे सुमन, खाली इतना ख़याल रखना कि कोई तुम्हारे भैया का जुतवा गायब ना कर दे; ३ हजार रुपया का एक ठो है| समझे|"
सुमन बोला- "हूँ!"
फिर दीपक वापस तवेरा में बैठता हुआ बोला- "दोनों का कितना हुआ? बताओ-"
सुमन वापस आगे की सीट पर कब्ज़ा जमाते हुए बोला- " तीन का तीन, तीन दुनी छौ! ६ हजार का..."
"तब देखा कितना महंगा है? ध्यान रखना."
प्रकाश चिल्गम चबाते हुए वापस अपने जगह पर बैठ, तो सुमन बोला- "अरे भैया! हम हैं न, कोई साली का हिम्मत नहीं है, कि हमारे नज़र के सामने से जूते को हाथ भी लगा सके| पिछला सोमबार के मैच में हम करुनेसवा(कोई करुणेश नामक बच्चा) के बौल पर ऐसा छक्का मारे थे कि टुनटुन सिंह के बँसवारी में जा के गिरा था|
अब जूते का करुणेश के गेंद और टुनटुन सिंह के बांस के बागीचे से क्या लेना और क्या देना? मगर इसी तरह बकवास बाते करते हुए दोनों भाई, ड्राईवर और दीपक जब फुलवरिया चौक पार हुए, तब अचानक ही प्रकाश बोला- "दीपक! बनिहाल में ठीक से रहना, वह १ दिन का मरजाद (शादी के बाद भी १-२ दिन बारात के रुकने कि प्रथा) है|"
"हाँ! तो!? इसमें ठीक से रहने का क्या मतलब?"
"ठीक से इसलिए कि तुम कही इधर उधर मत चले जाना..."
"अरे यार! हम इधर उधर क्यों जाएंगे?" दीपक ने देखा कि बहुत बात करने से थक चूका सुमन आगे के दोनों सीट के बीच के रस्ते से पीछे आ गया और दीपक और प्रकाश के बीच में पसर के सो गया- "भैया, हमको नींद आ रहा है| अभी सो लेते हैं, बाद में तो रात भर जागना ही है|"
गाड़ी अब पूरे रफ़्तार पर थी, दीपक ने खिड़की खोली| रात होने लगी थी, ठंडी हवा जो छन के अन्दर आ रही थी, वो ए.सी. से ज्यादा सुखद थी| दीपक ने हवा का पूरा मजा लेने के लिए बहार सर निकाला| उसके बाल फहराने लगे| उसने आगे देखा, सड़क दौड़ रही थी | बगल में देखा, पेड़ों और खेतो के झुण्ड भाग रहे थे | पीछे देखा, एक पिली मारुती ८००, दो बोलेरो - एक क्रीम और एक नीली रंग की और एक अमर-ज्योति ट्रावेल्स की नारंगी रंग की डीलक्स-विडिओ-कोच-बस पूरी सिद्दत से पीछा कर रहे थें|
हवा के झोंको के दबाव के कारण, या फिर किसी और कारण से अचानक दीपक के आँखों में पानी आ गया और उसने झट से अपने सर को वापस अन्दर खींच लिया |
प्रकाश जो सुमन को हलकी हलकी थपकिया दे रहा था, बड़े आराम से बोला- "आरती आज तुमको बनिहाल में मिलेगी "
दीपक अपने आँखों को पोंछना भूल गया और उसने एक पल भर को प्रकाश को देखा, और फिर सामने कार के शीशे से दिख रहे भागते हुए सड़क कि और देखने लगा| उसके दिमाग ने शायद काम करना बंद कर दिया था| वो ये भी नहीं सोच पा रहा था कि क्या बोले, या क्या प्रतिक्रिया दे| उसे अन्दर ही अन्दर गुदगुदी हुई, और वो अचानक बड़े जोर से मुस्कुरा पड़ा(जी हाँ! मुकुराया भी जोर से जाता है और धीरे से भी) और दीपक कि ओर मुखातिब हुआ- "हैं! ये तो खुशखबरी हो गयी बे!तुमको कैसे पता चला? कहा है? कैसी है? क्या बोल रही थी?...."
"ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है; उसकी शादी हो चुकी है" प्रकाश ने अपने तरफ की खिड़की खोली और चिल्गम बहार फेंका|
ड्राईवर ने आगे खाली रास्ता देख कर रफ़्तार और बढ़ा दी|
[२]
मैं आजकल ज्यादा देर इस ब्लॉग को नहीं दे पाता, मगर इसे पूरा जरूर करूँगा| दोस्तों, ऑफिस में व्यस्तता बढ़ गयी है, और दिमाग में ये कहानी भी तेज रफ़्तार से बढ़ रही है| अब ये रुकने वाली नहीं | बस पढने के लिए तैयार रहिये-
"एक दर्द भरी प्रेम कहानी : भाग- ७"
Bhai Jaan , BP ke marij bna kr manoge.......
ReplyDeleteek to aaapne kahani me suspense itna dal diya hai,,,,,,,aur phir adhuri........pandey ji kya krke manoge........
PK SHARMA
PK Sharma ji-
ReplyDeletemere is ajeeb se chitthe ko pasand karne ke liye shukriya... kya hai na ki asal me main 5 Dec., 2011 ko sachmuch is shaadi me shareek hone chala gaya tha; socha ki dekhta hun kya hota hai.
Wahan par kuchh ajeeb se ghatna-kram me fansa, sochta hi rah gaya ki use kin shabdon me likhun.... fir kahani kuchh dino ke liye ruk si gayi... abhi bhi kahani to aage nahi badhi hai, magar ghatnaen pure raftaar par hain... unme se hi kuchh chun chun ke aur apne kaaryalay ki ghanghor vyastataon se samay nikaal kar likhta rahunga... kahani poori to jaroor karunga. Yakeen rakhiye.
:)
okay, pandey ji.
Deletehume zarur bta dijiyega jb bhi aap likhe.......
hume intzaar rahega............
Are shab kab likhoge
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