Saturday, August 1, 2009

एक कविता.

सावन तेरे इन्तजार में।
भूले बिसरे दिन मेरे जो बीते तेरी छम छम में।
वो नदिया, वो खेत हरे जो भीगे तेरी रिम झिम में।
तेरे आने से जो सारे चेहरे खिल जाते थे
तेरी बूंदों से भीग के बूटे बूटे मुस्काते थे,
तू आता था तो बच्चे सडको पे जहाज बहाते थे-
तेरे लय में मिल के नर नारी मलहार सुनाते थे।
तेरा बादल, तेरी बरखा, तेरा पवन सुहाना था।
पत्ता पत्ता, खेत, गली, अग- जग तेरा ही दीवाना था।
पिछले बरस ही तू आया था, पर लगता है युग बीत गए।
सावन तेरे इन्तजार में, इस साल हम रीत गए।

प्रिय रंजन

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